वेद क़ुरआन
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जो लोग ईश्वरीय धर्म और दार्शनिक मत का अंतर नहीं जानते वे यह कहते हुए देखे जाते हैं कि
“जब तक हम इस जाति एवं धर्म के बंधनों से बाहर निकल कर
नहीं सोचेगे, कुछ भी नहीं बदलने वाला। आओ हम सब मिलकर इनसे मुक्त होने का प्रयास करें.”
जबकि सही बात यह है कि में नफ़रत और संकीर्णता से मुक्त होना है न कि धर्म से ही, जो कि हमें इन मानसिक रोगों से मुक्त कर सकता है .
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