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कलिमा ए तय्यिबा के इक़रार के बाद ज़कात इसलाम का तीसरा स्तंभ है और इसकी अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि क़ुरआन मजीद में नमाज़ क़ायम करने के हुक्म के साथ बार बार ज़कात अदा करने का हुक्म दिया गया है। ज़कात का मक़सद इसलामी समाज में मालदार लोगों से माल लेकर ग़रीब लोगों की आर्थिक रूप से मदद करना है ताकि ग़रीबी का ख़ात्मा हो। आज मुसलमानों में जो मुफ़लिसी और ग़रीबी हमारे समाज में मौजूद है वह इस बात का सुबूत है कि ज़कात की सही अदायगी नहीं हो रही है और वह असल हक़दारों तक पूरी तरह नहीं पहुंच रही है। आम तौर से लोग इस बात से नावाक़िफ़ हैं कि ज़कात लेने के हक़दार कौन कौन लोग हैं और ज़कात किन लोगों पर फ़र्ज़ है ?हर वह शख्स जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या 52 तोला चांदी या इस निसाब के मूल्य जितने माल पर साल गुज़र जाए तो उसे उस का चालीसवां हिस्सा यानि ढाई प्रतिशत ज़कात अदा करनी फ़र्ज़ है।
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