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रोज़ा रखने के बाद आदमी को एक भूखे की भूख का सच्चा अहसास होता है। जब ख़ुद पर भूख गुज़रती है तभी पता चलता है कि एक भूखे पर क्या गुज़रती है ?
दौलतमंद आदमी रमज़ान के महीने में ज़कात भी देते हैं। जिससे ग़रीबों को आर्थिक लाभ तुरंत मिलता है। वे उस पैसे से अपने लिए भोजन आदि का प्रबंध करते हैं। इस तरह उनके जीने के लिए सामान भी हो जाता है और वे अपने लिए रोज़गार ढूंढने के लिए लायक़ हो जाते हैं। वे अपने बच्चों को भूख की वजह क़त्ल करने पर मजबूर नहीं होते। इस तरह भूख से होने वाले जुर्मों की चेन ही टूट जाती है और जुर्मों की रोकथाम पर ख़र्च होने वाला धन बच जाता है जो कि समाज को तुरंत ही आर्थिक लाभ पहुंचाता है।
खाने के साथ पानी छोड़ देने से आदमी के अंदर उन हालात के लिए भी क्षमता जाग जाती है जबकि वह अपने जीवन में ऐसी किसी परिस्थिति में फंस जाए जहां खाने को तो क्या पीने को भी कुछ नसीब न हो और ऐसा करके ही आदमी प्यासे की तकलीफ़ और पानी की क़ीमत को जान सकता है। लोग रोज़ा रखें तो पानी को फ़ुज़ूल बर्बाद न करें.
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