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मुल्क में काफी समस्याएं हैं . उन पर चिंता जताने वाले भी बहुत हैं. उनके हल भी सब को पता हैं तो फिर वे समस्याएं हल क्यों नहीं होतीं ?
वजह सिर्फ यह है कि हरेक आदमी सुधार दुसरे के दायरे से शुरू करता है. मसलन कोई धार्मिक बाबा है तो वह अपने जैसे बाबाओं के सुधार के बजाय राजनेताओं और व्यापारियों के सुधार से अपना काम शुरू करता है. महिलायें अपना काम मर्दों को सुधारने से शुरू करती हैं. दूसरा भी अपना काम दूसरों को सुधारना समझता है. नतीजा यह है कि सब दूसरों को सुधार रहे हैं और खुद को पहले सुधारना है, इसे भुला दिया गया है. समाज सुधार का द्वार आत्म-सुधार है.
समाज को सुधारने के लिए किसी राजनैतिक पार्टी के ख़िलाफ़ आन्दोलन वही चलाता है जिसे पता नहीं है कि वास्तव में समस्या कैसे हल होगी ?
जो लोग उनके पीछे चल रहे हैं, वे अपनी ऊर्जा और अपना समय खराब कर रहे हैं.
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