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अच्छाई क्या है और बुराई क्या है ?, कोई इंसान इसे अपनी बुद्धि से तय नहीं कर सकता। समाज के सबसे ज़्यादा बुरे फ़ैसले सबसे ज़्यादा शिक्षित लोग करते हैं। जो लोग हुकूमत करते हैं। उन्हें जनता अच्छा समझ कर चुनती है। बाद में उनके फ़ैसले जनता के हक़ में बुरे साबित होते हैं।
नशा बेशक एक बुराई है। भांग और शराब की बिक्री आम है। क़ानूनी रूप से इन्हें बेचना जायज़ है। आदमी अपने अंदर महसूस करता है कि नशा करना और नशीली चीज़ें बेचना तो क़ानूनी रूप से नाजायज़ होना चाहिए। क़ानून भी ग़लत चीज़ को सही बताए तो फिर ग़लत को ग़लत कौन बताएगा ?
धर्म स्थलों पर भी नशीली चीज़ें चढ़ावे में चढ़ रही हैं। धर्म ही नशे को बढ़ावा देगा तो फिर नशे का नाश कौन करेगा ?
धार्मिक त्यौहारों पर जुआ खेला जाता है।
धर्म के जयकारे लगाकर अधर्म के काम किए जा रहे हैं। विधवाओं के पुनर्विवाह को पाप बताया जा रहा है। वे मौत से बदतर ज़िंदगी जी रही हैं।
इंसान अपना मक़सद भूल जाए तो यही सब होता है। समाज को सुधारना है तो उसे उसका मक़सद याद दिलाना होगा। उसे मक़सद याद आएगा तो उसे अपना पैदा करने वाला भी याद आएगा और अपनी मंज़िल भी। जब इंसान अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ना चाहेगा तो उसे अच्छा बनना ही पड़ेगा। इंसान को अच्छा बनने के लिए उन सभी धर्म-ग्रन्थों को पढ़ना होगा जिनमें ईश्वर और परलोक की बात पाई जाती है। वे सब हीरे-मोतियों से ज़्यादा क़ीमती बातों से भरे हुए हैं। कोई भी ग्रन्थ सत्य से ख़ाली नहीं है लेकिन हरेक ग्रन्थ में सत्य की मात्रा अलग अलग है। किसी में थोड़ा सत्य है, किसी में ज़्यादा और किसी में पूरा। जिस ग्रन्थ में जितना ज़्यादा सत्य है, वह मानव जाति की उतनी ही ज़्यादा समस्याएं हल करने मे सक्षम है। सत्य के अंश से मनुष्य के जीवन की अंश मात्र समस्याएं हल होती है जबकि पूर्ण सत्य से मनुष्य की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और आध्यात्मिक सभी समस्याएं हल हो जाती हैं।
समस्याओं के हल का स्तर ही यह तय करता है कि किस ग्रन्थ में सत्य अंश मात्र है और किस ग्रन्थ में पूर्ण है ?
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