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कैसी यह मुहब्बत है और कैसा यह त्यौहार है ?

वेद क़ुरआन
वेद क़ुरआन
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बच्चे ज़्यादा समझदार हैं बड़ों से, इस होली पर मुझे ऐसा ही लगा।

Dr. Anwer Jamal
Dr. Anwer Jamal

शनिवार को मुझे अपने पेट में दर्द महसूस हुआ। दवाई ले ली। रविवार को सोचा कि अल्ट्रासाउंड करा लिया जाए ताकि पित्ताशय की पत्थरी के साइज़ का भी पता चल जाए। होली की वजह से सभी सेंटर्स मुझे बंद मिले। लौटते हुए एक मशहूर चैराहे पर मुझे कुछ     बच्चों ने अपनी पिचकारी दिखाई, मैंने कहा, बेटे ! हरेक आदमी पर रंग नहीं डालते।
मेरे इतना कहते ही वे मान गए।
आज सुबह मैं अपने घर से निकल कर चंद क़दम ही गया था कि हमारे पड़ोसी पं. प्रेमनारायण शर्मा जी हाथ में रंग की बाल्टी और गुलाल लेकर मेरी तरफ़ बढ़े। मैं घबराया नहीं। मुझे उम्मीद थी कि मैं उन्हें बताऊंगा कि मेरे पेट में दर्द हो रहा है, हल्का सा बुख़ार भी है और मैं अल्ट्रासाउंड कराने जा रहा हूं तो वह मान जाएंगे।
वह मेरे पास आए और मेरे मना करने के बाद भी और मुझसे मेरी परेशानी जानने के बावजूद भी उन्होंने मेरा मुंह गुलाल से हरा कर दिया और फिर जब उनका दिल इससे भी नहीं भरा तो उन्होंने दो मग भरकर रंगीन पानी डाल दिया।

Pandit Premnarayan Sharma
Pandit Premnarayan Sharma
उनकी इस हरकत से मुझे तकलीफ़ तो हुई लेकिन मैंने उन्हें बुरा भला इसलिए नहीं कहा क्योंकि अपनी तरफ़ से वे अपनी मुहब्बत का इज़्हार कर रहे थे

क्या मुहब्बत में अपने प्यारों की तकलीफ़ को भी नज़रअंदाज़ कर देना मुनासिब है ?
मैं घर लौटा और कपड़े बदले और दोबारा फिर घटिया से कपड़े पहने ताकि फिर से कोई अपनी मुहब्बत का इज़्हार करने वाला मिले कम से कम कपड़े तो बच जाएं।
कैसी यह मुहब्बत है और कैसा यह त्यौहार है ?
बच्चे फिर भी ग़नीमत हैं।
बड़े लोग अगर बच्चों की तरह हो जाएं तो काफ़ी दिक्क़तें दूर हो जाएं।

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